भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया / हरियाणवी

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया,

बे ने घढ़ी बैठ के ठाली

कर तावल वार भाजरी,

जिसी दारू माँ आग लाग री

कलियाँदार घाघरी,

पतली कम्मर लचकत चाली ।


भावार्थ


--'तेरा रूप चांद की तरह खिला-खिला-सा है । लगता है, भगवान ने तुझे फ़ुरसत में बैठ कर गढ़ा है । यह

सुनकर युवती वहाँ से भाग कर दूर चली गई । ऎसा लगा जैसे शराब में आग लग गई हो । कलीदार लहंगा पहने

वह अपनी पतली कमर को लचकाती हुई वहाँ से चली गई ।'