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"वे उनसोँ रति को उमहैँ वे उनसोँ विपरीत को रागैँ / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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वे उनसोँ रति को उमहैँ वे उनसोँ विपरीत को रागैँ । | वे उनसोँ रति को उमहैँ वे उनसोँ विपरीत को रागैँ । |
23:26, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
वे उनसोँ रति को उमहैँ वे उनसोँ विपरीत को रागैँ ।
वे उनको पटपीत धरैँ अरु वे उनही सों निलँबर माँगैँ ।
गोकुल दोऊ भरे रसरँग निसा भरि योँ हिय आनँद पागैँ ।
वे उनको मुख चूमि रहैँ वे उनको मुखि चूमनि लागैँ ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।