भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे बीमार थे / कल्पना सिंह-चिटनिस

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 27 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी प्रवृति है
औषधियां सहेज कर रखना,
और रोगों का
निदान ढूंढना।

मेरे शुभचिंतक कहते हैं
मैं समय गंवाती हूं,
अमूल्य क्षणों को
व्यर्थ लुटाती हूँ।

हर रोज आकर
वे उलाहने देते हैं मुझे।
पर इधर कई पखवारे बीत गये,
वे नहीं आये तो सोंचा कि

मैं ही चलूं आज
उनकी कुशल पूछने,
तो मालूम हुआ -
वे बीमार थे।