भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शरद कुंडल / अनिरूद्ध

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 17 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरूद्ध |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpur...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खंजन रितु दूत नयन अंजन सुखदाई
उतरल चढ़ हंस शरद स्वागत अगुआई॥
महके झर हरसिंगार, भिनुसहरा प्यारा
लाल तली चाँदी, कनफूल कि सितारा॥
पथ खुले दसो दुआर पंथी अगराइल
सोखे संताप शरद, व्याधि सीा पराइल॥
बाजे चुलबुल बिहान, प्राती धुन वीणा
भोर लुटावे बिंदिया रात के नगीना॥
खिलल कास पावस नभ धो चले बुढ़ाए
निरमल नभ नील नयन माटी मुसुकाए॥
फुदुक-फुदुक पंछी वन प्रान में समाइल
रितु-राधा अँखियन, घनश्याम अब लुकाइल॥
दुधिया चुनरी कुंडल कनक किरन झूले
नीलम नभ छत्र घाम पियरी कटि भूले॥
हिमकन मोती माला, शीत बरे हीरा
नाचत घुँघरू टूटल, भोर लगे मीरा॥
चमकत जल-देश रहे, मीन-मन पिरितिया
अनगिन अँखिया नहाय, दूध से धरतिया॥
नील रतन जल चाँदी दरपन जड़ जाए
गगन उतारे नदिया, ताल उतर जाए॥
बिछुड़ल घनश्याम, लोर-भुँइ जसुदा माई
बा झरल पसेना-मनि मेहनत-गुन गाईं॥
फुर-फुर उडत्र जाय विहग, नयन अँटकि जाए
टिटिकारत बैलन के कवन झटकि जाए॥