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सब इतिहास हुई / इष्टदेव सांकृत्यायन

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उड़ते-उड़ते ये दिन
मुँहजली निगोड़ी रातें,
पलिहर में ढेलवाँस
भाँजतीं मुलाक़ातें
सब इतिहास हुईं

रात-रात भर
धरन ताकना
और सोखना आँसू!
हर क़िताब के
हर पन्ने में
अक्स देखना धाँसू!

सत्य भूलकर
ढोते रहना
सपनों की सौगातें
विफल प्रयास हुईं!
 
साथ-साथ ही
बुनते रहना
कल के ताने-बाने!
बाबूजी पर दया
और
अपने टीचर को ताने!

बाहर आते ही
अफसर
होने की बातें
टूटी आस हुईं।