भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समाप्त / तुलसी पिल्लई

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 16 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी पिल्लई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने
एक महान कार्य किया है
उस सुनहरी
चंचल मछली को
जिसकी आँखे
कथाई-सी थी
और शरीर
चितकाबरा
जो मेरे उजड़े
कमरे का
रौनक बढ़ाया करती थी
और उन तमाम
बोझिल करने वाली
परेशानियों से
राहत पहुँचाया करती थी
अपनी दिलकश
अदाओ से,
मेरा
उसंर मन मोह लेती थी
आज मैंने
उसे काँच के
पिन्जरे से
ले जाकर
विशाल समुद्र में
आजाद कर दिया
यह सोचे बिना
कि अब
मेरे कमरे की
बस्ती और रौनक
समाप्त हो जाऐगे
और जीवन विरान।