भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ / लछिराम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लछिराम }} <poem> साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ ही सोँ रंगरावटी मेँ मधुरे सुर मोदन गाय रही हैँ ।
सांवरे रावरे की मुसकानि कला कहिकै ललचाय रही हैँ ।
लालसा मे लछिराम निहोरि अबै कर जोरि बुलाय राही हैं ।
बैँजनी सारी के भीतर मेँ पग पैँजनी बजाय रही हैँ ।


लछिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।