Last modified on 24 जुलाई 2009, at 21:19

साँझ / हो ची मिन्ह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:19, 24 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हो ची मिन्ह |संग्रह= }} <poem> खिलता है गुलाब मुरझाता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खिलता है गुलाब
मुरझाता है

खिलता है गुलाब
सूख जाता है निष्प्राण

लेकिन
ख़ुशबू उसकी भर जाती है
कारागार में
और गुस्सा जगाती है क़ैदियों का