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सोनवाँ लुटावे दिनमान / रामवचन शास्त्री अंजोर

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अतिराली भुइयाँ, झूमेला असमान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ लुटावे दिनमान।।
बड़ नीक लागे हऊ ललकी किरिनियाँ,
छउकि-छउकि भरमावेले हरिनियाँ।
कुहुकि कोंइलि कुहुकावेले परान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ......।।

नाधे अनवादि ई वसंत बयरिया,
बहियाँ उठाइ देहिं तोरे बँसवरिया।
मारे सरसोइया करेजवे में बान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ...।।

कजरारी तिसिया नयन अझुरावे,
मेंहदी के गंध मनवाँ के बउरावे।
पीके मधु मस्त गावे भँवरा अमान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ...।।

सेमरऽ पलास लाल बन्हले पगरिया,
मन चिहुँकाइ देति आम के मोजरिया,
महुआ टपकि तान दिहलस कमान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ...।।

लटके अनार लागे सगुनी सिन्होरा,
कतरेला सुगना लुकाइके टिकोरा।
अमरऽ गुलाब के गजब मुस्कान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ...।।

बहियाँ लफाइ गेहूँ-बलिया बटोर के,
चूमे जनमतुआ मतिन पोरे-पोर के।
अरिए प किसना के सुरहुर मचान,
भोरे-भोरे हो, सोनवाँ...।।