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सौ अनुबन्ध / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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13
जिएँगे कैसे
किश्तों में ये ज़िन्दगी ?
सौ अनुबन्ध
हज़ारों प्रतिबन्ध
फिर ये तेरी कमी ।
14
भरी घुटन
विचलित मन
घुप्प अँधेरा
चुप्पी करती बातें
काटे न कटें रातें ।
15
तलाशे तुम्हें
यादों के बीहड़ में
खोज न पाएँ
खिंची ऐसी दीवारें
ढूँढ़ें -द्वार न मिला ।
16
सुलझी नहीं
समय की अलकें
उलझी और
इनको जब -जब
हमने सुलझया ।
17
गहन रात
नभ का फैला ताल
लगाएँ गोता
अनगिन थे तारे
ठिठुरते बेचारे ।
18
नेह लुटाओ
या ठेस पहुँचाओ
मर्ज़ी तुम्हारी
अपनी फ़ितरत
सिर्फ़ फूल बिछाना ।