भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हंस के जीभ तरासल छै (कविता) / रामदेव भावुक

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:17, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदेव भावुक |अनुवादक= |संग्रह=रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहकि गेलौ सरकार सिपाही, उड़ल कबूतर बाज भेलौ
बलात्कार करै छौ बरदी, राइफल तोर रंगबाज भेलौ

देखबै छौ तारा दिन में ई
उल्लू के सुरुज सुझावै छौ
हमरा त’ कौआ सए ओक्कर
बच्चे तेज बुझाबै छौ

चील शान्ति-सन्देश के वाहक, गिद्ध सिद्ध महराज भेलौ

भुक्खल कुहकि रहल छै कोइली
पपिहा कण्ठ पियासल छै
पानी दूध अलग करतौ के
हंस के जीभ तरासल छै

मोर आँखि के लोर कहै छौ, उजरा टोपी ताज भेलौ

चातक चकोर पंछी परबासी
बेचारा सुरखाव भेल छै
बुलबुल बन्हुआ मजूर बाग के
सारस नया नवाव भेल छै

चमगादर शूली पर चढ़लौ’, नीलकण्ठ मोहताज भेलौ

बेरहम हरम के मुट्ठी मे
बत्तख मुर्गी के जिनगी छै
बोलय बाग के हरिहर ई
भावुक मन में चिनगी छै

प्यादा के सिर पर छै सेहरा, बादशाह बेताज भेलौ