भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है न अम्मा, है न मुन्ना / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:38, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर मैं लीपूं
तुमको अम्मा
ज्यों लीपती
तुम आंगन को?

तो मैं भी
आंगन के जैसी
सुथरी बनकर
चमक उठूंगी।

तब तो तुम को
हौले हौले
सम्भल सम्भल कर
छूना होगा
है न अम्मा?

हां चाहते
रहूँ साफ मैं
ध्यान तो तुमको
रखना होगा
जैसे रखते
आंगन का हम
है न मुन्ना?