भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काव्यशास्त्र विनोदेन... / मृत्युंजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 25 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृत्युंजय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाज़ारों सरकटे चमकीले बुत पसरे
चेहरे पर स्वर्ण परत हर दँगे बाद पुती
सुन्दरता क्या वाहियात चीज़ निकली !

भीतर भीतर सड़ते उफनाते हैं ख़याल
गन्ध प्राणलेवा के ऊपर से यह सिंगार
अ-लँकृति भी क्या वाहियात चीज़ निकली !

समय प्रतिगामी हुआ
हत्यारे प्रगतिशील
तुलना भी क्या वाहियात चीज़ निकली !

मुक्ति नैपकिन हुई
सुपरमॉल कल्पवृक्ष
उपमा भी क्या वाहियात चीज़ निकली !

बेसी की फचर-फच्च
काम पड़े मुँह-माटी
कविता भी क्या वाहियात चीज़ निकली !