भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वन्दे मातरम् / लक्ष्मण त्रिपाठी 'प्रवासी'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 30 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण त्रिपाठी 'प्रवासी' |अनुवा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरग से ऊँच माता भारत के भुइयाँ से
तोरा कोरा पलेला पिआर वन्दे मातरम्।
तोरे रस पनिया में सजेले गतरिया से
जनमेला सुघर विचार वन्दे मातरम्।।
सोना-चानी बाटे रामा तोरा धूरा-मटिया में
हीरा-मोती होखेला अँजोर वन्दे मातरम्।
तोरा रे अँगनवाँ में सोहेला गगनवाँ से
ताकि-ताकि नाचे मन मोर वन्दे मातरम्।।
नाहीं हम हईं रामा बकरी-पठरुआ से
लेई भागी चोरवा सियार वन्दे मातरम्।
हम हईं तोर माता पूतवा सपूतवा से
हम हईं शेर बरियार वन्दे मातरम्।।
शान में रहीले हम, जान ना बुझीले हम
होला जब माता के हुँकार वन्दे मातरम्।
रोखा-रोखी होला, तब सोखीले समुन्दरो के
नाग साथे करीं फुफुकार वन्दे मातरम्।।
तोरे हवे सीख माता शान्ति उपकरवा के
मनवा में राखीले संभार वन्दे मातरम्।
बाकी केहू अँगुरी देखावे वन्दे मातरम्
तब हम बाघवा-हुँड़ार वन्दे मातरम्।।