भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सज्जन ढेकुल श्लेष / दीनदयाल गिरि

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 16 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल गिरि |अनुवादक= |संग्रह=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुन को गहि यहि खेत में नमैं सुबंसज दोय ।
कृसितन जीवन देत हैं पीछे गुरुता होय ।।

पीछे गुरुता होय कूप तें आदर पावैं ।
ऊँच कहैं सब कोय अमृत घट पुन्य सुहावैं ।।

बरनै दीनदयाल धन्य कहिये जग उन को ।
सहिं दुख सुख दैं सबै सरल अति हैं गहि गुन को ।। ६४।।