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सुनया लै करण कथा ई / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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सुनया लै करण कथा ई
हरबा लै मनक व्यथा ई
नहि छँ ककरो पलखति समय गमाओत रे की।
रहितहु ई हर्षक बेला
चारू दिस विपतिक मेला
देखि अधीर हृदय, के धीर धराओत रे की।
हृदय नहि निर्मल ककरो
सत्ये नहि संवल ककरो
केवल स्वप्नक मधु - संसार बसाओत रे की।
बन्धक छै’ लोटा - थारौ
आङन मे फटलै’ साड़ी
की सीमा पर सीना अपन अड़ाओत रे की।
घर-घरमे बढ़तै’ शिक्षा
भेटँ’ ने केवल भिक्षा
बाँटि बेसाहक अन्न हकन्न कनाओत रे की।
इज्जति मर्यादा गेल’
सतयुगकेर दादा एलै’
सत्य अहिंसा नाङड़ि अपन कटाओत रे की।