भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धतूरे के जो फल होते हैं रसवाले नहीं होते / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 6 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धतूरे के जो फल होते हैं रसवाले नहीं होते ।
खजूरों के दरख़्तों के घने साये नहीं होते ।

खुली आँखों से दुनिया देखने वाले ये कहते हैं,
तज़िरबे जो भी होते हैं कभी झूठे नहीं होते ।

जहाँ पर भी निजामों में अवामी पैठ होती हैं,
वहाँ पर आदमी के साथ में धोखे नहीं होते ।

तबस्सुम जब लवों पर खेलने के वास्ते मचले,
समझ लेना वहां पर ख़ौफ़ के चर्चे नहीं होते ।

निवाले छीनकर जो बेवजह आँसू बहाते हैं.
सुगम ख़ुदगर्ज़ होते हैं वो रखवाले नहीं होते ।

09-02-2015