भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन / रामकृपाल गुप्ता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 3 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृपाल गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिव को न छोड़ा, न ब्रह्मा को छोड़ा
ना छूटे विष्णू भगवान,
सबही क मनवा वकल होई डोला
जब लागे पुहुपना क बान॥सारारारा
फागुन महिनवा पलाश एस लहकै
जैसे जियरा में उठेला तुफान
रंगवा गुलाल संग होली मिलनवा
पीये छकि-छकि बुढवा जवान॥सारारारा
बौराए अमवा अनंग रस महके
कुहु-कुहु छेड़े कोयलिया तान
भइया जवनरी क बतिया न पूछा
आज बुढिया भइल बा जवान॥सारारारा
ईतो बंसत रंग बगराया
फूले फूले शुधा संग रास रचाये
कान्हा छेड़ मुरलिया क राग॥सारारारा
भौंरा कमल संग रतिया बिताये
दिनवा में करे गुंजार
मदमाती तितली फूल-फूल घूमे
बांटे पराग व प्यार॥सारारारा