भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विराग / दीनदयाल गिरि

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 16 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल गिरि |अनुवादक= |संग्रह=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एहो त्याग मृगेस तुम बिन यह तन बनराज ।
करत स्यार कामादि ह्वै स्वतन्त्र सिरताज ।।

ह्वै स्वतन्त्र सिरताज फिरत कूकत कै फूलै ।
किन गज्जत घननाद पराक्रम कित वह भूले ।।

बरनै दीनदयाल त्रास जौलों नहिं देही ।
तौलों नहिं ये कूर कढ़ैंगे हिय तें एहो ।। ५३।।