भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादी, दादी दादी दे / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:30, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी, दादी, दादी दे
पीठी पर तों लादी दे।

बस्ता रोजे बढ़ले जाय
ऊपरे-ऊपर चढ़ले जाय
नैका-नैका पोथी सब
बच्चा सिनी पढ़ले जाय

देभैं पैंट पुरनका तेॅ
कुर्त्ता उज्जर खादी दे।

फुर्ती जरा देखैलोॅ कर
पहिनें जरा नहैलोॅ कर
मम्मी-डैडी बीजी छै
तोंही जरा पढ़ैलोॅ कर

सर्दी-खोंखी रोकै लेॅ
घी में भुनलोॅ आदी के।

दादी, दादी, दादी दे
पीठी पर तों लादी दे।