भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थ्री-डी अल्ट्रा-साउण्ड / तुषार धवल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 12 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे हिलते देखा गर्भ में
धड़कते हुए तुम्हारी धड़कनों से
आकार-निराकार के बीच अपनी सगुण-निर्गुणता में
एक हाईफ़न-सा
हमारे निरर्थकों के बीच
शब्द के पूर्ण अर्थ-सा
उसे नहीं मालूम कि
पिता की कोख में
एक पिता उसी तरह धड़कने लगा है मुझमें
जैसे कि वह जीवन के गर्भ में धड़क रहा है
मुझमें आड़ा धँसा हुआ
यह हृदय माँ हो कर
झनझना उठता है फैल जाता है जहाँ-तहाँ
तुम-तुम हो जाता है
घास-घास हुआ
लस्सा-लस्सा हो जाता है मेरा तुम्हारा होना इस क्षण
जब जूते और आवरण देहरी पर उतार कर उतरते हैं हम
तुम्हारे गर्भ गृह में उसके दर्शन के क्षण
सृजन का चिरन्तन-बोध
पिघला-पिघला हो जाता है
वे आदिम शिलाएँ पिघलती हैं मेरे गर्भ में
पिघले पिता के जन्म में
एक और पिता उसके पीछे खड़ा होता है
अपने सभी पिताओं के साथ
जिनका कोरस फुसफुसाता है :
सृष्टि अपना बीज रख रही है सुरक्षित उसमें
एक नदी कुनमुनाती है बर्फ़ की परत के भीतर से
अपनी पहली अंगड़ाई में
उसकी नाज़ुक दस्तक से दरक जाता है समय का बर्फ़ीला कलेजा
कई कपाट खुलने लगते हैं
अपने ही भीतर
इस चक्र के गर्भ में
जहाँ हरा अन्धेरा है उद्गम का
उस आँख की झपक भर
रोशनी के मूल में ।