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मेरे गाँव में सूरज चढ़ आया होगा / दिनेश देवघरिया

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सूरज थोड़ा चढ़ आया होगा
बसंती हवा भी
थोड़ी गर्माई होगी।
चौक पर चहल-पहल छाई होगी
कुल्हड़ की चाय से
सोंधी खुशबू आई होगी।
हलवाई ने जलेबी भी बनाई होगी।
लुहार का पसीना-
लोहा गला रहा होगा
सुनार-
किसी के कानों की बाली बना रहा होगा
पनवड़िया पान लगा रहा होगा
मनिहारा-
किसी गोरी को चूड़ी पहना रहा होगा
किसान-
मिट्टी में सोना उगा रहा होगा।
सुनहली धूप में गेहूँ की बाली
लहलहा रही होगी।
उसका आँचल भी उड़ा होगा
वह शर्मा रही होगी।
अमिया, कच्‍चे बेर
बच्‍चे खा रहे होंगे।
इमली देख ऊँचे पेड़
वह ललचा रही होगी।
सूरज पूरा चढ़ आया होगा
हवा गर्माई होगी।
थोड़ी देर में
चौपाल लगेगा, चर्चा होगी-
हरिया के खेत में
किसकी गाय घुस आई थी,
मोहन काका को
कल रात इतनी खाँसी क्यों आई थी,
अरे ! कल तो
मदना की नई साईकिल आई थी,
रात तो
रमूआ की गइया बियाई थी,
सूरजा की बिटिया
अब बड़ी हो गई है,
अबदुल्ला के छोटकू को तो
नौकरी मिल गई है।


रतिया मौसी की बेटी की
परसों सगाई है
सबका काम बँट रहा होगा
कुछ इस तरह
मेरे गाँव का चौपाल सज रहा होगा।