भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हृदय हृदय केर दीप जराउ / एस. मनोज
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 3 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एस. मनोज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हृदय हृदय केर दीप जराउ
आइल अछि दीवाली यौ
दीप मोनकेँ बिना जरैने
नहि आइत खुशहाली यौ
बरीख-बरीख सँ जरा रहल छी
घर-घर दीयाबाती
शिक्षा केँ बिन नहिंये आइल
कत्तहुँ सुख केँ राती
दीप ज्ञानकेँ बिना जरैने
भागत नहि कंगाली यौ
नेह प्रेम केर दीप जराउ
जाति धर्म क' छोड़ू
घृणा केर जे आगू बढ़बै
ओ मटका केर फोड़ू
प्रेमक उपवन सींच सींच क'
बनियौ प्रेमक माली यौ
विजय पर्व थिक उजियाला ई
तम सँ मुक्ति पाउ
हृदय बीच जे सर्प छिपल अछि
ओकरा मारि भगाउ
भ' जाइत मानव स्वलीन त'
के करतै रखवाली यौ।