भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहाँ तक उनकी सोच कभी नहीं जाएगी / एलिसेओ दिएगो / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 14 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एलिसेओ दिएगो |अनुवादक=राजेश चन्द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज ही हमें बताया गया है
कि तुम सचमुच मर चुके हो,
कि तुम जा चुके हो वहाँ
अन्ततः जहाँ ले जाना चाहते थे वे तुम्हें

वे भूल कर रहे हैं
हमसे कहीं ज़्यादा, यह मानकर
कि एक तुम धड़ हो शुद्ध संगमरमर के
जड़ीभूत इतिहास में,
जहाँ कोई भी
खोज सकता है तुम्हें ।

जबकि तुम
कभी कुछ भी नहीं थे सिवाय आग के
सिवाय प्रकाश के, हवा के सिवाय,
अमेरिका की स्वाधीनता के सिवाय
हर कहीं के लिए प्रेरणा-पुँज
जहाँ तक उनकी सोच
कभी जा ही नहीं सकती, चे-ग्वेरा