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जहाँ तक उनकी सोच कभी नहीं जाएगी / एलिसेओ दिएगो / राजेश चन्द्र
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आज ही हमें बताया गया है
कि तुम सचमुच मर चुके हो,
कि तुम जा चुके हो वहाँ
अन्ततः जहाँ ले जाना चाहते थे वे तुम्हें
वे भूल कर रहे हैं
हमसे कहीं ज़्यादा, यह मानकर
कि एक तुम धड़ हो शुद्ध संगमरमर के
जड़ीभूत इतिहास में,
जहाँ कोई भी
खोज सकता है तुम्हें ।
जबकि तुम
कभी कुछ भी नहीं थे सिवाय आग के
सिवाय प्रकाश के, हवा के सिवाय,
अमेरिका की स्वाधीनता के सिवाय
हर कहीं के लिए प्रेरणा-पुँज
जहाँ तक उनकी सोच
कभी जा ही नहीं सकती, चे-ग्वेरा