भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओळभौ / संजय पुरोहित

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:20, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे मिनख
म्हैं ईज रच'र भेज्यौ हो थन्नै
इण धरा माथै
सुरग सरूप खातर
म्हैं हुय बणायो हो थन्नै
म्हारै सनेसां रो डाकियो
अर दूत नेह रो
पण थूं
गढ़ नाख्या म्हारा
नित नूवां सरूप
भेज्या हा म्हैं
हरकारा म्हारै प्रेम सनेसो
थां तांई लावण
पण थूं
बांट नाख्यां हरकारा नै भी
कर दीन्हौ मजहबां रो गुणा-भाग

सरम सूं म्हारो मूंडौ धरती मांय
म्हैं हुय तो हूं
थारौ जलमदाता

धूजणी छुडावंती इण
आकासवाणी नै सुण'र
मिनख रो सुपनो टूट्यौ
बो जाग्यो
चारूं मेर देख्यो
अर पडूत्तर में
आपरै नगाड़ा, ढोल-ढमाका
री बढ़ा दीन्ही थाप
अर लाउड सपीकर रो
बढ़ा दीन्हौफ
वोल्यूम फुल्लमफोर !