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कहू कोइली कुहुकि की बाजय / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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कहू कोइली कुहुकि की बाजय
विजन वन मे इतरा ?
सुनू कोइली कुहुकि रस बोरय कलश उमड़ा उमड़ा।
ई माकन्दक सौरभ, रभसल
पवन चलय, वन समसल समसल
तेँ स्वर्ण मंजरी केर करय निशि भरि पहरा।
मातल आइ वसन्तक आङन
देखू तेँ जूही लता फुलायल अछि छितरा।
कहू गुनगुन गुन की सब गाबय कली लग जा भम्हरा।
सुनू गुनगुन मे गून चलाबय मतल मद मे भम्हरा।
छिलकि रहल मधु कलश भरल ई
वन उपववन अछि तरल तरल ई
लखि आकुल तबधल प्राण, दान किछु दी हमरा।
सुनू गुनगुन मे गून चलाबय मतल मद मे भम्हरा।
लागत किरन कली मुसकायत
मधुकर केर मन प्राण जुड़ायत
झुमि रहल लता-तरू हिलल मिलल नितरा नितरा।
ई दखिन पवन झुमबय अपनहु लहरा लहरा।
कारी अलि, कोइली से कारी
कारी वृन्दावनक बिहारी।
चल नाची मगन मन अपन अपन सुधि-बुधि बिसरा।