भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा / साहिल अहमद

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:38, 24 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साहिल अहमद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> मैं ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा
पत्थरों की चोट फिर खाने लगा

मैं चला था पेड़ ने रोका मुझे
जब बरसती धूप में जाने लगा

दश्त सारा सो रहा था उठ गया
उड़ के ताइर जब कहीं जाने लगा

पेड़ की शाखें वहीं रोने लगीं
अब्र का साया जहाँ छाने लगा

पत्थरों ने गीत गाया जिन दिनों
उन दिनों से आसमाँ रोने लगा