भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खनन अपराध है / अनुज लुगुन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:08, 3 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो हरियाली से मुँह मोड़ चुके हैं
वे सभी इस अपराध में संलिप्त हैं

जो जीडीपी वाले हैं
जो सेंसेक्स के साथ उछल रहे हैं
उन पर मुक़दमा दर्ज किया जाए
अर्थशास्त्रियों से पूछा जाए कि
वे गिलहरी की कितनी प्रजातियों के बारे में जानते हैं
उनकी परीक्षा हो समुद्र में तैरने की, बिना ऑक्सीजन के
या उनसे कहा जाए कि
वे बिना छाँव के कितनी दूर चल सकते हैं

राजनेताओं से पूछा जाए
कि वे होराल और डोल्फ़िन के बिना
कितने युगों तक चुनाव जीत सकते हैं

सवाल तो उन नागरिकों से भी बनता है जो
बिना समझे वोट डालने चले जाते हैं
और नंगे होकर बाज़ार में कथकली करते हैं
अब कोई खूंख्वार जानवर नहीं है धरती पर
न ही उनके पास कोई विनाशक हथियार है

आदमी से ज़्यादा क्रूर अब कोई नहीं रहा
कविता में वह शान्ति का दूत है
और खाने की थाली पर अणुओं से लैस हमलावर

एक जीव आणविक हथियार नहीं चाहता
वह शेल्टर होम नहीं चाहता
उसकी आँखें बारिश बोती हैं
वह अपने खेतों में खनन नहीं चाहता
वह नहीं चाहता अपने परिवार में अपराधियों का प्रवेश ।