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जोम भरल दिन आइल रे / रामवृक्ष राय 'विधुर'

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जोम भरल दिन आइल रे !
जेने देखीं आँख फेरि के, लउके हरियर धान।
दे-दे ताव मोंछि पर गावे, बिरहा चतुर किसान।
चवा-चवा भुइयाँ में ई, कइसन उन्माद समाइल रे !
जोम भरल दिन आइल रे !
बैला बइठल पगुरी माँठे, गइआ करे चराउर
खेत-खेत में कइले बाटे पनिया खूब हिराउर
बछड़ा घुमड़े द्वार-द्वार पर लउके सभे अघाइल रे !
जोम भरल दिन आइल रे !
कइसे बीती दिनवाँ तिरिया कोठिला खोलि दिखावे।
गइल माघ दिन उनतिस बाकी, कहि किसान समझावे।
कुछ लागलि मुँहबालि दनाइलि कुछ लउके पिअराइल रे।
जोम भरल दिन आइल रे !