भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद आती है / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश विमल |अनुवादक= |संग्रह=आमेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक टूटी-सी मचैया याद आती है
गांव की दोपहर भैया याद आती है।

विश्राम का जब समय मिलता है कभी
नीम, पीपल, बरगदों की याद आती है।

कुदाली थामे हुए ये हाथ रुक जाते
खेत-क्यारें गाँव की जब याद आती है।

बैठे हुए यूँ ही अचानक आँख भर आती
बूढ़े विवश मां-बाप की जब याद आती है।

तैर जाती देह भर में एक मीठी-सी चुभन
प्रतीक्षारत ब्याहता जब याद आती है।

छोड़ जाती है मुझे असहाय-सा इस शहर में
बिछड़े हुए घर-द्वार की जब याद आती है।