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माँ की याद / वीरेन डंगवाल

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क्या देह बनाती है माँओं को ?

क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख

जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ?

या यह कि हम मनुष्य हैं और एक

सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी

जिसमें माँऎँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं

बर्फ़ीली चोटी पर,

और सबसे आगे

फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने ।