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ताक / लक्ष्मीकान्त मुकुल
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थाकल आदमी
जब कबो भारी गठरी लदले
आवेला तनी नियरा
ओके देखि के जाने
काहें दो थरथराये लागेला
बांस के पुल
हमरा गाँव के