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हे सिरजणहार ! / महेन्द्रसिंह सिसोदिया 'छायण'

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हे सिरजणहार !
भाखर कितांई
भांगिया तैं
भुजबळां रै पांण
अर--
कितांई रच दिया तैं
गढ किला अर गांव
कितरा खिलाया
फूल न्यारा
प्रीत रै तैं साथ
विसवास नीं होवै मिनख नै
देखता दसराव |

हे सिरजणहार !
खळकती
कळकळ करंती
नदी में जळधार
परभात रा
परतख पळकता
इतियास रा एहनांण
जकौ-
रचिया ठेठ ऊंडा
पुरषारथ पांण|
भाखरां नै भांग मांड्या
चाव सूं चितराम
गूंजै अजै तक
गीत उण रा
गगन-धर में आज |

हे सिरजणहार !
थार रै मांही ऊगाया
अणगिणत थूं रूंख
खोद धर नै
काढ पांणी
फसल सूं फूठराप
तैं कियौ
सिणगार करनै
वसु हरियल रूप
छेड़्या तैं
राग अणगिण
धवळ धोरां मांय
अंजसै जिण पर अजैतक
पीढियां पौमाव |

हे सिरजणहार !
काळ अर दूकाळ री
छती छाती चीर
भूख अर उण त्रास में
तैं किया वो काम
खेजडा़ रा छालडा़ खा
घड़ दियौ इतियास
छप्पनै काळ सूं
विसवास नै बचाय
तैं चिणाया गौरवें
वै सतखंडा़ं म्हैल |

हे सिरजणहार !
तैं रचाया ग्रंथ कईयक
वेद अर पुराण
तैं बताया पंथ ऊजळ
धरम हिंवडै़ धार
अर--
तैं कीनी बात निरभय
कूंत सांची रोज |

हे सिरजणहार !
अब निभाजै
रीत वां हीज
आखरां उनमान
घड़ नूंवा तूं शिल्प साथै
प्रीत रा परमांण
बच सकैलां आज इणसूं
मिनख रौ विसवास
नैह थांरौ सरस निरमळ
एक ऊण्डी आस |

हे सिरजणहार !
कर पाछौ
सरस सिरजण
मेट सगळी त्रास
तैं में रेवै सदा सूं
विधाता रौ वास|