भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह मैंने माना जीवन-धन! / तोरनदेवी 'लली'

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:00, 21 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोरनदेवी 'लली' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यह मैंने माना जीवन-धन!
सुन्दरता जीवन का मूल।
इस मायारूपी प्रप´्च में
सरल जगत जाता है भूल॥
रमणी के च´्चल नयनों का,
या सौन्दर्य प्रकृति का जाल।
तोड़ सका है इस पृथ्वी पर,
बिरला ही माई का लाल॥
किन्तु मधर फल जीवन का
यदि साधुशीलता पाऊँगी।
यह आशा है अखिल विश्व पर
पूर्ण विजय पा जाऊँगी॥