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आव मरवण, आव ! / पारस अरोड़ा

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आव मरवण, आव !
एकर फेरूं
सगळी रामत
पाछी रमल्यां ।
एकर फेरूं चौपड़-पासा
लाय बिछावां ।
ओळूं री ढिगळी नै कुचरां
रमां रमत रमता ई जावां
नीं तूं हारै, नीं म्हैं हारूं
आज बगत नै हार बतावां
आव,
मरवण एकर फेरूं आव !
सामौसाम बैठजा म्हारै
बोल सारियां किसै रंग री
तूं लेवैला,
पैली पासा कुण फैंकेला ?

आ चौपड़, ऐ पासा कोडियां
जमा गोटियां पैंक कोडियां
पौ बारा पच्चीस लगावां
म्हैं मारूं थारी सारी नै
म्हारी गोट छोडजै मत ना
तोड़ करां अर तोड़ करावां
चीरै-चीरै भेळै बैठां
मैदानां में फोड़ करावां
होड जतावां
कोडी अर गोटी रै बिच्चै
हाथ हथेळी आंगळियां
जादू उपजावां
ऐसौ खेल खेलता जावां
दोनूं जीतां, दोनूं हारां
काढ़ वावड़ी खेल बधावां ।
एकर मरवरण आव !