भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब से देखा है तुम्हें उकेरते चित्रों में / सुमन केशरी
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 31 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जब से देखा है
तुम्हें उकेरते चित्रों को
भावमग्न
एक-एक रेखाओं पर
तुम्हारे कोमल स्पर्शों की छुवन
मेरे भीतर की रूह
छटपटाती है
इन रेखाओं में समा जाने को
खिल जाने को तुम्हारे भीतर
कमलवत
आखिर शिला देख कर ही तो रोया था कविमन अहिल्या के लिए ...