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'उच्चारण' / जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'

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शब्द स्पष्ट हैं, साक्ष्य हैं
फिर भी इनमें कुछ उलझा उलझा-सा है
शब्दों की बहती धारा है, बस धारा!
किन्तु, भावों का उच्चारण क्या है?
कहाँ है?

संजीदा है, अतिसुन्दर है, मनभावन है
रूप, प्रतिभा, शब्दों की सुर साजन है
कहीं दर्द, कहीं 'जख़्म' बहुत गहरा है
कहीं रात काली है,कहीं उगता सवेरा है
शब्दों की भंगीमाओं के सिर सेहर‍ा सा है
किन्तु, भावों का उच्चारण क्या है?
कहाँ है?

एक प्यारा बच्चा प्यार के,
बीज बो आया बगिया में, संसार में !!
स्वयं बड़ा हुआ, जैसे बीज से पौधा हुआ
पौधे से नीड़ हुआ, जैसे बच्चे से युवा हुआ!

'इस संसार में बुरे लोग,
अच्छाई को काटते रहे हैं
बिल्कुल वैसे ही जैसे जंगल में
सीधे पेड़ काटे जाते हैं।'
तब उस बच्चे युवा का प्रतिफल क्या है?
तब उस नीड़ का जीवन क्या है,कहाँ है?
शब्दों का मायाजाल है, बस मायाजाल!
किन्तु, भावों का उच्चारण क्या है?
कहाँ है?

जहाँ कसाई पशुओं को काटता है,
वहीं एक किसान पशु को सन्तान,
की तरह पालता भी है
जहाँ एक बेटा दुर्जन हो सकता है
वहीं एक बेटा श्रवण भी हो सकता है
जहाँ एक वैश्या भी माँ के किरदार में,
पूर्णतः माँ है, उसका वही दामन,
वही आँचल भी है;
जहां एक बेटी, बेटी है, बहू है, माँ है,

पत्नी है, वही दुर्गा है,पार्वती,सरस्वतीभी है
ईश्वर, सत्यता, विश्वास, सच्चे रिश्तें
ह्रदयी-पावन भावों के उदाहरण हैं
सच हैं, रिश्तों मे भावों के उच्चारण हैं।

एक बेटे के गुस्सेलेपन में,
एक पिता की शालीनता में
एक माँ के महके आँचल में
एक बेटी के ह्रदय तल में
कहीं भावों के उच्चारण हैं
न शब्दों की चादर है
न ही दिखावापन है
सच्चाई है, मार्मिकता है
दृढ़ निश्चय है, स्वछंदता है
कहीं भाव बादल हैं
कहीं सूखे में, भाव ही सावन है

सच है, रिश्तों में भावों के उच्चारण है।'