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'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था / गुलाब खंडेलवाल


'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था
क्यों न चले आये मनमोहन! यदि मन सदा वहीं था!'
 
'मन यदि मेरी सुधि कर लेता
धरती- गगन एक कर देता
कभी आपको, कंस-विजेता
                      कुछ भी कठिन नहीं था
 
'अश्व आपके रथ के पल में
जाते उड़ तारा-मंडल में
वृन्दावन तो बस करतल में
                         पलकों तले यहीं था

'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था
क्यों न चले आये मनमोहन! यदि मन सदा वहीं था!'