भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

'मन के तार तुझी से बाँधे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'
 
'साज भिन्न हो समय-समय का
राग न छूट सका नव वय का
सुर अब भी है वही हृदय का
                        लाख जोग-जप साधे
 
'वेणु बजाता वंशीवट  पर
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर
                         नयन खोलकर आधे
 
'फिर-फिर वृन्दावन में आके
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारी प्रेम-कथा के
                           पृष्ठ रहे जो सादे'

'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'