भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

'अनमोल' अपने आप से कब तक लड़ा करें / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 10 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=टहलते-टहलत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'अनमोल' अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें

हम से ख़ता हुई है कि इंसान हम भी हैं
नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें

अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं
किससे वफ़ा निभाएं तो किससे जफ़ा करें

नंबर मिलाया फ़ोन पे दीदार कर लिया
मिलना हुआ है सह्‌ल तो अक्सर मिला करें

तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं
तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें

दी है क़सम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो कैसे ये हम मोजिज़ा करें