भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँगना जे नीपल ओसरवा लागी ठाढ़ भेलै हे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 24 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> इस गीत में नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में निःसंतान स्त्री द्वारा पुत्र-प्राप्ति की लालसा की पूर्ति के लिए कठपुतले बनवाकर ही संतोष करने की भावना का वर्णन है। अंत में, प्रभु की कृपा से उसकी लालसा की पूर्ति होती है। फिर तो गर्भवती होने पर उसकी साड़ी कमर में ठहरती ही नहीं। ननद अलग खुशी में फूली नहीं समाती। पुत्रोत्पत्ति के बाद सारा घर ही आनन्दमय हो जाता है।
इस गीत में पुत्र के प्रति ममता, पुत्र-प्राप्ति के लिए विह्वलता तथा पुत्र होने पर प्रसन्नता का वर्णन हुआ है।

अँगना जे नीपल ओसरवा<ref>बरान्दा</ref> लागी ठाढ़ भेल हे।
नारायन, बिनु रे बेटा के हबेलिया, कि मनहु न भाबै हे॥1॥
अँगना बोहारैत सलखियो<ref>सहेली</ref>, सलखियो चेरिया गे।
चेरिया, अपना बालक मोरा देहो, कि जियरा बुझायब हे॥
मार हो कि काट हो, कि देस से निकाली देहो हे।
रानी, बड़ि रे बेदन के होरिलवा, होरिला<ref>बालक</ref> हम ना देबऽ हे॥3॥
घर पिछुअरबा में बढ़ई, त तोहें मोर बढ़ई भैया रे।
भैया, काठ के पुतर मोरा गढ़ी देहो, जियरा बुझायब हे॥4॥
काठ के पुतर गढ़िए देब, रँग रूप उरही<ref>चित्र खींचना; उरेहना</ref> देब हे।
रानी, मुखहुँ न बोले कठपूतर, धीरज कैसेॅ राखब हे॥5॥
आठहिं मास जब बीति गेलै, आठो अँग भरी गेलै हे।
नारायन, कमर से चीर ससरि गेलै, छन छन पहिरब हे॥6॥
नबहिं मास जब बीति गेलै, ननदो बिहँसि पूछै हे।
नारायन, कब रे होरिलवा जनम लेतै, अजोधा लुटायब हे॥7॥
दसहिं मास जब बीति गेलै, होरिला जनम लेल हे।
नारायन, ननदो जे उठल हरसित, भौजी घर सोहर हे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>