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अँगना निपिहऽ हे सासु, कीलबे कोल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पतोहू अपनी सास से कोहबर लिखने, उसे सजाने तथा अपनी ननद के लिए उससे दामाद ढूँढ़ने का उपाय बतलाती है। वह योगी के रूप में बैठे हुए दामाद को फुसलाकर लाने का भी तरीका बतलाती है। बाद में तो वह उसे फुसलाकर अपने अनुकूल बना ही लेगी। उसका यह कहना कितना उपयुक्त है कि बेला का फूल संध्या समय खिलता है, लेकिन आपका दामाद आधी रात को खिलता है। फिर तो सवेरा होते-न-होते प्रीति जुड़ ही जायगी।
इस गीत में वर्णित पतोहू अत्यंत चतुर तथा व्यवहार कुशल है।

अँगना निपिहऽ<ref>लीपना</ref> हे सासु, कीलबे कोल<ref>चारों ओर; कोना-कोना; टुकड़ा-टुकड़ा करके</ref> हे।
कोहबर लिखिहऽ हे सासु, मन चित लगाय हे॥1॥
सभे रँगल पटिया हे सासु, दिहो तू बिछाय हे।
मानिक दियरा हे सासु, सेहो दिहो जराय हे।
सभे समतुल<ref>एकत्र करके; संतुलित करके</ref> करि हे सासु, खोजिहऽ जमाय हे॥2॥
गाम के पछिम हे सासु, बिहुली<ref>वृक्ष-विशेष</ref> के गाछ हे।
ओहि तर बैठल हे सासु, रघुरैया जमाय हे॥3॥
तपसी के भेस हे सासु, धूनिया रमाय<ref>आग जलाकर तापना या तपस्या करना</ref> हे।
हाथ धै उठैहऽ हे सासु, चूमि बरु लिहऽ हे॥4॥
चलि जब दिहऽ हे सासु अँगुरी लगाय हे।
धिआ के नुकैहऽ<ref>छिपा देना</ref> हे सासु, छिटकी<ref>सिटकिनी</ref> लगाय हे॥5॥
हमहिं परबोधब हे सासु, तोरो जमाय हे।
बेला जे फूलै हे सासु, साँझुक बेरिया<ref>साँझ के समय</ref> हे॥6॥
तोहरे जमैया हे सासु, फूलै आधी रतिया हे।
होयते भिनसरबा हे सासु, जोड़तै पीरितिया हे॥7॥

शब्दार्थ
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