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अँग्रेज़ मेहमान का प्रश्न / हेमन्त कुकरेती

बड़ी मेहरबानी की उस अँग्रेज़ ने
था वह उनसे अलग नहीं जो ज़्यादा पैसा जमा करने के बाद
अविश्वसनीय फक्कड़ और सहने लायक उदार हो जाते हैं
उसके पूर्वजों ने जिस देश पर राज किया
वहाँ वह नौकरी करने आया बड़ी मेहरबानी की

दोस्त मेरा कृतज्ञ हुआ
उसे अपनी एक पीढ़ी से अर्जित अँग्रेज़ी सुनाकर
और पुश्तैनी अमीरी दिखाकर
सोचा दोस्त ने अँग्रेज़ ले जाएगा उसे अपने साथ
उस भद्र पुरुष ने दोस्त को कृतज्ञ होने के कई अवसर दिये

गया वह दोस्त के साथ उन बस्तियों में
जहाँ जीवन खट्टी सड़ाँध का नाम है
दोस्त शर्मिन्दा होता रहा
सुगन्धित रूमालसे मुँह ढककर उसने ग़रीबी को नहीं
ग़रीबों को हज़ार गालियाँ दीं
बताया कि पापी को पार्टी में शामिल करने
और पाप को सनातन समस्या बनानेवाली उसकी सरकार की
भरसक कोशिशों के बावजूद ये निकम्मे लोग
कभी ऊँचा नहीं उठाएँगे अपना जीवन-सतर

सरकारी भाषा में भी वह दे नहीं सका अँग्रेज़ मेहमान के
इस प्रश्न का उत्तर
कि अपनी ग़रीबी की गरमी से परेशान ये लोग
सड़कों पर सोकर क्या उसकी सरकार का विरोध कर रहे हैं
या उस व्यवस्था से विद्रोह
जिसमें उसका जन्म हुआ