भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँचरा माघी के फूल सन्हियावै / भगवान प्रलय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँचरा माघी के फूल सन्हियावै
के बहियारी में बौसली बजावै
नशे-नश पोरे पोर नाय बुझावै छै जोर
हवा पछिया नें अँचरा उड़ावै
के बहियारी में बौंसली बजावै

रोज एना बाजतै जों बाँसोॅ के बौंसली
मोॅन रहि जैतै सरंगोॅ में खोसली
आठो आँग भसियाय-मोॅन भँसी भँसी जाय
जेना भादोॅ में गांग हहावै
के बहियारी में बौसली बजावै

कहियो जाँव धौंस मारी कोशी लहाय छी
आंग बेखी आपन्है सें आपन्हैं लजाय छी
तैय्यो लारै लुतरी काँयचोॅ के चूड़ी
घावोॅ पर नून छिरयावै
के बहियारी में बौंसली बजावै

टिहकै टिटहिया कछारी पर जखनी
मोॅन करै पाँखे मोचारी दौं तखनी
लाव बेरोॅ नाँय कन्छी नाँय कोय मलहवा
बिन खेवा पार के लगावै
के बहियारी में बौंसली बजावै

ई बौंसली एक दिन जरुरे जरैबै
फेरु बहियारी में बकरी चरैबै
चुनी-चुनी पढ़वै मलहवा केॅ गारी
जरली केॅ नाँय एना जरावै
के बहियारी में बौंसली बजावै