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अँजुरी भर अँगड़ाई / अवनीश त्रिपाठी

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सिरज रहा है धूप सलोनी
सिरहाने पर सूरज
भोर झरोखे पर ले आई
अँजुरी भर अँगड़ाई

दूर क्षितिज पर टहल रहे हैं
बादल के मृगछौने
श्याम-सलोने पर्वत जैसे
कुछ हैं बौने-बौने
मौसम के हरकारे बनकर
आये वंशी-मादल
धुनें,राग,लय,ताल समेटे
मदमाती पुरवाई

झाँक रहीं किरणें कनखी से
इच्छाएँ मधुवन की
काजल ओढ़े नयन पढ़ रहे
परिभाषाएं मन की
नई गुदगुदी उठकर कब से
पोर-पोर तक पहुँची
खिली मञ्जरी फुनगी चहकी
कली-कली इँगुराई

नेहनदी ने गीत सुनाये
कल-कल सम्बन्धों के
पृष्ठ खुले पुलिनों पर आकर
हस्तलिखित ग्रन्थों के
सतहों पर मौसम की बेटी
करती है अठखेली
झुके पेड़ सब नाप रहे हैं
पानी की गहराई