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अँधी ठकुरौती / कुमार रवींद्र

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'लाठी की भैंस'
         यही फिर हुई कसौटी
तोड़ रही चौखट को अँधी ठकुरौती
 
कभी हुई 'बेलची' यह
और कभी 'देवली'
काँप रही घर-घर
संबंधों की देहली
 
घर सभी मसान हुए - बज रही जुझौती
 
गली-गली फिरती है
ताकत चंगेज़ी
हँसती बेशरमी से
वहशी ख़ूँरेज़ी
 
गाँव-गाँव कथा वही -टूटती कठौती
 
कल थी बंदूक चली
लाश हुआ भोला
उस दिन से काँप रहा है
हरिजन टोला
 
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