भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँधेरी रात / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँधेरी रात
पी लेती है जैसे
छाया को
ऐसे पी लेता है
अर्थों को अँधेरा मन

तभी तो आज
हवा फागुन की
डालियों में अटक रही – सी है
और खटक रही- सी है
नयी आयी हुई ऊष्मा
अभी-अभी फूटी हुई कोंपलों को
बहुत दूर
दक्षिण की तरफ़
नीली है पहाड़ की चोटी
और लोटी- लोटी लग रही है
आँगन के पौधे की आत्मा
स्तब्ध इस शाम के
पाँवों पर