भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँधेरे में डूबे बिना / संतोष कुमार चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 31 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार =संतोष कुमार चतुर्वेदी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> चकाचौंध भरे …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चकाचौंध भरे उजाले से
अन्धेरे में आ कर
तत्काल ही नहीं समझा जा सकता
अन्धेरे को ठीक से
तब शर्तिया तौर पर चौंधिया जायेंगी आँखें
और नहीं दिखायी पड़ेगा
बिल्कुल नजदीक तक का
अन्धेरे में कुछ भी
अन्धेरे को देखने के लिए
पहले अन्धेरे के अनुकूल बनानी पड़ती हैं आँखें
अन्धेरे को समझने के लिए
होना पड़ता है पहले पूरी तरह अन्धेरे का
अन्धेरे को जानने के लिए
अन्धेरे के साथ ही पड़ता है जीना
अन्धेरे को नहीं देखा जा सकता
अन्धेरे में डूबे बिना