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"अंखियां हरि–दरसन की प्यासी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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अंखियां हरि–दरसन की प्यासी।
 
अंखियां हरि–दरसन की प्यासी।

23:20, 2 जनवरी 2008 का अवतरण

अंखियां हरि–दरसन की प्यासी।

देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि–दिन रहति उदासी।।

आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फांसी।

केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।।

काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन हांसी।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ¸ करवत लैहौं कासी।।