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अंगगीत / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

आदि भूमि, आदि देव, आदि नर जहाँ भेलै
वही खण्ड हमरोॅ कहावै अंगभूमि हो।
जेही भूमि पर भेलै बली चक्रवर्ती भूप
दानोॅ के कथा के कहै-गावै अंगभूमि हो।
बलिये के पुत्र छेलै अंग चक्रवर्ती राजा
तहीं सेॅ तेॅ भूमि ई कहावै अंगभूमि हो।
जेकरा छै पुण्य भारी पहिलोॅ जनम केरोॅ
वही बड़भागी नर पावै अंगभूमि हो।

यही भूमि केरोॅ राजा दधिवाहन, दिविरथ
धर्मरथ, चित्ररथ, सत्यरथ, रोमपाद,
सौसे सृष्टि जानै छै कि चतुरंग पृथुलाक्ष
चम्प आरो हरिअंक अंग केरोॅ आह्लाद।
बही रे भूमि पे भेलै महादानी सूर्यपुत्र
गूंजै छै अभीयो वहाँ कर्णे केरोॅ वही नाद।
वेदोॅ में पुराणोॅ में छै जेकरोॅ कि गुणगान
अंगिरस जहाँ के ऊ, छेकै अंगभूमि हो।

ऋषिशृंगी केरोॅ भूमि, विश्वामित्र-अष्टावक्र
नचिकेता-पालकाप्य केरोॅ अंगभूमि हो।
परशुराम के भूमि, जहाँ वासूपूज्य ऐलै
जैन महावीरो ऐलै, धन्य अंगभूमि हो।
जहाँ कि सलेश भेलै, विरजा के अवतारोॅ
गोपीचन्द योगी केरोॅ छेकै अंगभूमि हो।
यहा अंग केरोॅ राजा दुनियाँ में छैलोॅ छेलै
चम्पाराज वहाँ के कहावै अंगभूमि हो।

दुनियाँ रोॅ देश-देश गावै छै चम्पा रोॅ गाथा
धरमोॅ के किस्सा रं विराजै अंगभूमि हो।
चम्पाराज चम्पाभूमि सहरसा-मधेपुरा
अंगुत्तराप भूमि जे कि अभियो कहावै छै।
कोशी केरोॅ नैहर छेकै सौसे अंगुत्तर खण्ड
अंगमाता, अंगदेवी जकां ही पुजावै छै
यही कोशी माता लहालोट छै खगड़िया में
देखी केॅ कताने मैया बड्डी हरसाबेॅ छै।

कर्णगढ़ कर्णचौरा, मुद्गल ऋषि-भूमि
आनन्द मूर्ति के धाम बसै अंग देशोॅ में
ऋषियो विभांडक के यहीं छै आश्रय-कुटी
मुद्गलपुर सूर्ये कलियुग भेषोॅ में
गंगा के किनारा खड़ा जरासंघोॅ केरोॅ किला
युगोॅ-युगोॅ बादो होनै औघड़ोॅ के भेषोॅ में
गृहकूट जहाँ भावै, त्रिपुर सुन्दरी सजै
पालवंशी-पलना कहावै अंगभूमि हो।

कमलो के पातोॅ पर ओसे रं पुरैनियां छै
कोशी केॅ लगैनें गल्ला लागै मणिहार छै।
झील आरो पोखर में भरलोॅ छै कटिहार
कृष्णेॅ केरोॅ वांही कही छिपलोॅ ठो हार छै
कृष्णगंज केरोॅ कथा होने लागै कुछु-कुछु
द्वापर सें सीधे-सीधे जुड़लोॅ टा तार छै।
रेणु के, सुधांशु जी के, सतीनाथ भादुड़ी के
जहाँ के अनूप लालोॅ के छेकै, डीह अंगभूमि हो।

जानेॅ कत्तेॅ-कत्तेॅ ऋषि, जानेॅ कत्तेॅ-कत्तेॅ कवि
अंग के भूमि पे ऐलै वाणी केॅ सुनावै लेॅ
जेहना सिमरिया रोॅ काव्य केरोॅ दिनकर
जमुई सें जगन्नाथ होनॅ केॅ गिनाबै लेॅ
भवप्रीता केरोॅ गीत, सुमन सूरो के प्रीत
समीर डोमन साहु, लागै की बतावेॅ लेॅ
महाऋषि में ही जेन्होॅ, चन्दर दासो तेॅ ओन्हेॅ
पुण्य केरोॅ पलने ठो छेकै अंगभूमि हो।

विश्वविद्यालय केरोॅ केन्द्र विक्रमशिला विहार
जेकरोॅ कीर्ति छे सौंसे देश आ विदेश में
यही तेॅ भूमि ऊ छेकै समुद्र-मंथन केरोॅ
शिवजी विराजै जहाँ मंदारोॅ के भेषोॅ में
बैद्यनाथ धाम यहाँ, बासुकी धामोॅ छै याँही
सृजन-संहार झूमै जहाँ छै नागेश में
वही भूमि, वही प्रान्त, स्वगोॅ सेॅ सुखी आ सुन्दर
जहुऋषि के मातृभूमि, छेकै अंगभूमि हो।

तिलकामांझी के भूमि सियाराम सिंह केरोॅ
पार्थ ब्रह्मचारी हेनोॅ यहीं होलै वीर छै
जागै शाही, लक्खी शाही, होने ही महेन्द्र गोप
जेकरोॅ कथा छै कहै गंगा-चानन-चीर छै
मयूराक्षी नदी कहै सिपाही-विद्रोह कथा
सीदो-कान्हो-चाँद-भैरव जागलोॅ ज्यों तीर छै।
प्रभु नारायण सिंह केरोॅ खाली ई नैं अंगमाता
रानियो सर्वेश्वरी के छेकै अंगभूमि हो।

बडुआ के, मान केॅ भी धारणें छै अंगभूमि
सोना, मोती, हीरा, सालो भरी भरी देतेॅ जाय
महानन्दा मानै कहा, यहू रुकी-रुकी बहै
कोशी के कानोॅ में कुछु होलै होलै गैतेॅ जाय
जेना कि गुमानी नदी धोलेॅ अंग काया बहै
होनै केॅ अशोक नदी अंगभूमि धोलेॅ जाय।
ठामे-ठामे पर्वतो तेॅ ठामे-ठामे जंगलो छै
भगते रं दिन-रात नाम्है अंगभूमि हो।

घरे-घरे सामा आरो छठी केरोॅ गीत गूंजै
बिहुला के कमला के गीत उठै घरे घर
काही तेॅ भगैत हुएॅ, कांही तेॅ मनौन झूमै
घाटो आ घटेसर के प्रीत उठेॅ घरे घर
बिहुला, विशाखा आरो चन्दनवाला के भूमि
कुलदेवी नाँखिये पुनाबै सब्भे घरे घर
अंग केरोॅ कुलदेवी, अंगदेवी, अंगधात्री
आदि देवी केरोॅ यही आदि अंग भूमि हो।

भारतभूमि पेॅ शोभै अंगभूमि हेने जेन्होॅ
शिव रोॅ जटा पेॅ शोभे दूतिया के चान हो
अंगभूमि-भारत के मोॅन छेकै चित्त छेकै
भारत जों योगी छेकै, अंग छेकै ध्यान हो
भारतै के मान आ सम्मान लेली जीत्तोॅ छै ई
एकरे रक्षा में अंग तीर आ कमान हो
जग में प्रिय छै अंग होने जेन्होॅ ‘जगप्रिय’
व्रात्य केरोॅ व्रात्यदेव छेकै अंगभूमि हो।